शनिवार, जनवरी 27, 2007

विचारों की आज़ादी

कल भारत का गणतंत्र दिवस था. जब भी 26 जनवरी आती है तो दिल करता है कि किसी तरह दिल्ली के राजपथ पहुँच कर परेड देखने को मिल जाये. मेरे लिए उस परेड का सबसे अच्छा हिस्सा होता था विभिन्न प्राँतों से आये लोकनर्तक और रंग बिरंगी झाँकियाँ. बचपन में ताल कटोरा बाग और रवींद्र रंगशाला के पास लगे गणतंत्र दिवस शिविर जहाँ देश के विभिन्न भागों से आये बच्चे और जवान ठहरते थे, वहाँ घूमना बहुत अच्छा लगता था. अचरज भी होता था और गर्व भी हमारे भारत में कितने अलग अलग लोग हैं जिनकी भाषा, पौशाक, चेहरे इतने अलग अलग हो कर भी हमसे इतने मिलते जुलते हैं.

1950 में बना हमारा गणतंत्र हमें अपनी बात कहने की आज़ादी देता है और इस बात पर भी गर्व होता है कि कुछ छोटे मोटे अपवाद छोड़ कर भारत में आज भी विभिन्न दृष्टिकोण रखने की आज़ादी बनी हुई है, जबकि अपने पड़ोसी देश चीन से ले कर अन्य बहुत से देशों में यह आज़ादी कितने समय से बेड़ियों में बँधी है.

पत्रकारों की अंतर्राष्ट्रीय संस्था सीविप यानि "सीमाविहीन पत्रकार" (Reporter without Borders) इस बात की जानकारी देता है कि किस देश में अपने विचार रखने की कितनी स्वतंत्रता है. सन 2007 का प्रारम्भ हुए 26 दिन ही हुए है पर इन 26 दिनों में सीविप के अनुसार 6 पत्रकार और 4 मीडिया सहायक मारे गये हैं, तथा 142 पत्रकार, 4 मीडिया सहायक और 59 अंतर्जाल के द्वारा विरोध व्यक्त करने वाले लोग जेल में बंद किये गये हैं. इराक में जिस गति से पत्रकारों को मारा जा रहा है उसके बारे में सीविप का अभियान कहता है, "अगर इराक में पत्रकार इसी तरह मरते रहे तो जल्द ही आप को स्वयं वहाँ से समाचार लेने जाना पड़ेगा".



कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व मानव अधिकार घोषणा में "हर मानव का अपने विचार व्यक्त करने" के अधिकार कवियों, लेखकों तथा उपन्यासकारों की एक गैर सरकारी संस्था पेन इंटरनेशनल के जोर डालने तथा अभियान करने पर रखा गया था. आज भी पेन इंटरनेशनल (PEN - Poets, Essayists, Novelists) भी जेल में बंद और मारे जाने वाले लेखकों, कवियों और उपन्यासकारों के बारे में सूचना देती है.

आजकल सरकारी सेंसरशिप का नया काम है अंतर्जाल पर पहरे लगाना ताकि लोगों की पढ़ने और लिखने की आज़ादी पर रोक लगे. सीविप इन देशों को "काले खड्डे" (Black holes) का नाम देती है और इनमें सबसे पहले स्थान पर है चीन, जहाँ कहते हैं कि 30,000 लोग सरकारी सेसरशिप विभाग में अंतर्जाल को काबू में रखने का काम करते हैं. कहते हें कि चीन में अगर आप किसी बहस के फोरम या चिट्ठे पर कुछ ऐसा लिखे जिससे सरकार सहमत नहीं है तो एक घंटे के अंदर उसे हटा हुआ पायेंगे. जिन अंतर्जाल स्थलों को चीन में नहीं देख सकते उनमें वीकीपीडिया भी है.



दुख की बात तो यह है कि बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ चीनी सरकार से डर कर इस काम में सरकार की मदद कर रहीं हैं. चीनी अर्थशास्त्र के बारे में निकलने वाले समाचार पत्र "आधुनिक अर्थशास्त्र समाचार" के प्रमुख सम्पादक शि ताओ ने एक सरकारी फरमान जिसमें समाचार पत्रों को कहा जा रहा था कि वह "तियानामेन की बरसी पर इसके बारे में कोइ समाचार न छापें" को विदेश में भेजने की कोशिश की तो याहू ने यह संदेश रोक कर उसे चीनी सरकार को दिया और शीताओ को देश विरोधी होने के अपराध में दस साल के कारागार की सजा हुई.

सीविप के अनुसार पत्रकारों की सेंसरशिप और दमन में वियतनाम, तुनिसी, ईरान, क्यूबा, जैसे देश भी शामिल हैं. अंतर्जाल में सेसरशिप से कैसे बचें इस विषय पर सीविप ने एक किताब भी निकाली है.


1 टिप्पणी:

  1. पहले कोमेंट देने की लिंक दिखी नहीं थी, दुःखी मन से विदा हुआ. आज आपके चिट्ठे पर आया तो लिंक दिखाई दी.
    बोलने की आज़ादी ही ऐसा आकर्षण हैं जो मुझे लोकतंत्र का प्रबल समर्थक बनाए हुए है. चीन का विकास भी लोगो की जीभ काटकर निर्थक हुआ लगता है.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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