शुक्रवार, जनवरी 21, 2011

अलेसान्द्रा का प्रश्न

बोलोनिया में रहने वाली मेरी जान पहचान की अलेस्साँद्रा की कहानी आज कल हर दिन किसी न किसी अखबार पत्रिका या टीवी पर दिखायी जा रही है. अलेस्साँद्रा कहती है, "मेरा बस चलता तो मैं यह बात इस तरह से नहीं उठाती, लेकिन बात मेरे मानव अधिकारों की है और मैं पीछे नहीं हटूँगी."

हुआ यह कि अलेस्साँद्रा ने नगरपालिका दफ़्तर में अर्ज़ी दी अपना नया व्यक्तिगत पहचानपत्र यानि आई कार्ड बनाने की. नगरपालिका वालों ने कहा कि हम आप को आई कार्ड में विवाहित नहीं लिख सकते, आप को तलाक लेना पड़ेगा, आप का विवाह हमारे देश के कानून के हिसाब से गलत है.

Alessandra Bernaroli, Bologna, Italy

अलेस्साँद्रा कहती है, "क्या जबरदस्ती है, मैं क्यों तलाक लूँ? मैंने चर्च में भगवान के सामने शादी की है, फ़िर कोर्ट में सिविल विवाह किया है. हमने सुख दुख में साथ निभाने की कसम खायी है, जब हम दोनो खुश हैं तो हम क्यों तलाक लें, हम तलाक नहीं लेंगे."

इस कहानी को समझने के लिए हमें घड़ी की सूई को पीछे ले जाना पड़ेगा. 39 वर्ष पहले जब अलेस्साँद्रा पैदा हुई थी तो उसका नाम अलेस्साँद्रो रखा गया था. पर बचपन से ही अलेस्साँद्रो को समझ आ गया कि कुछ गलत था, उसका शरीर तो पुरुष का था लेकिन वह भीतर से स्वयं को स्त्री महसूस करता था. साथ ही उसे यह भी समझ आया कि समाज में इस तरह के लोगों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जाता, उनकी हँसी उड़ाई जाती है, शर्मनाम समझते हैं. इसलिए इस बात को उसने स्वयं से ठीक से नहीं स्वीकारा, बल्कि वर्ज़िश करना, पहलवानों वाला शरीर बनाना जैसे शौक पाल लिए. उसके माता पिता, दोनो अध्यापक हैं, लेकिन कुछ पुराने विचारों के थे और चूँकि कैथोलिक चर्च इस बात को ठीक नहीं मानता, तो उसने अपने भीतर की इस इच्छा को दबा और भुला दिया.

जब विश्वविद्यालय में पढ़ने गया तो वहाँ अलेस्साँद्रो की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई. जल्दी ही दोनो में प्यार हो गया, और दस वर्ष तक यह प्यार चला, फ़िर 2005 में दोनो ने वहले चर्च में विवाह किया फ़िर कोर्ट में सिविल विवाह भी किया. विवाह के कुछ समय बाद, उसमें इतनी हिम्मत आयी कि अपनी भावनाओं और इच्छाओं को इमानदारी से समझ सके, अपने आप को स्वीकार कर सके. उसने इस बात को अपनी पत्नी से बताया कि वह सेक्स बदल कर नारी बनना चाहता था.

"मेरी पत्नी बहुत हिम्मतवाली है, पर शर्माती है, इसलिए वह प्रेसवालों से कुछ नहीं कहना चाहती या मिलना चाहती. शुरु में उसे धक्का लगा, लेकिन फ़िर वह समझ गयी कि मैं जैसा भी हूँ मैं ही हूँ. तब से उसने हमेशा मेरा साथ दिया है, मेरे हर निर्णय को समझा है. मैंने अपने माता पिता से भी यह बात की, उन्हें भी धक्का लगा लेकिन फ़िर भी समय के साथ उन्होंने मुझे समझा, और मैंने लिंग बदलाव का रास्ता अपनाया."

लिंग बदलाव आसान नहीं. 2007 से ले कर अलेस्साँद्रा के 13 ओप्रेशन हुए हैं. अमरीका में जा कर गले का ओप्रेशन कराया जिससे आवाज़ औरत जैसे हुई. यौन हिस्से का ओप्रेशन थाईलैंड में हुआ. चेहरे के निचले भाग का भी एक नाज़ुक ओप्रेशन हो चुका है.

अलेस्साँद्रा कहती है, "शरीर का बाहरी बदलाव, यौन सम्बन्धों में बदलाव, यह सब आवश्यक हैं, लेकिन इन सबके साथ, एक बदलाव अपने अंदर भी है, जो आसान नहीं. आप किस तरह से दूसरों से बात करते हो, किस भाषा का प्रयोग करते हो, लोग आप से किस तरह बात करते हैं, जब पुरुष था तो यह भिन्न तरीके से होता था, अब नारी हो कर भिन्न होता है. पुरुष नारी से किस तरह मिलता बात करता है, और नारी पुरुष से किस तरह मिलती बात करती है, यह दोनो बातें भिन्न है, और मैंने समझी हैं. इनसे अलग मैंरे जीवन का एक हिस्सा है जो मैंने नारी और पुरुष दोनो की दृष्टि से देखा है. यह सब बातें बहुत जटिल हैं और कम शब्दों में नहीं समझायी जा सकती. इस विषय पर मेरे पास बहुत कुछ है कहने सुनाने को, मेरे मन में इस विषय पर किताब लिखने की इच्छा है."

Alessandra Bernaroli, Bologna, Italy

नर शरीर के साथ पैदा होना और अंदर से स्वयं को नारी महसूस करना या फ़िर, नारी शरीर के साथ पैदा होना पर भीतर से खुद को नर महसूस करना, इसे ट्राँसजेंडर कहा जाता है. अक्सर नर शरीर के साथ पैदा हुए हों पर भीतर से खुद को नारी महसूस करने वाले लोगों का यौन आकर्षण अन्य पुरुषों की ओर होता है, इसलिए अक्सर वह समलैंगिग माने जाते हैं, लेकिन अलेस्साँद्रो को प्यार हुआ एक लड़की से. पाँच साल पहले, दोनो ने चर्च में विधिवत विवाह किया. उस समय किसी ने उँगली नहीं उठायी क्योंकि उस समय अलेस्साँद्रो पुरुष थे और स्त्री से विवाह कर रहे थे. "शरीर की बाहरी और भीतरी यौन पहचान में अन्तर होना एक बात है, नर या नारी के लिए यौन आकार्षण महसूस करना अलग बात है", अलेस्साँद्रा समझाती है.

इटली में अधिकतर लोग कैथोलिक ईसाई हैं. इस धर्म में तलाक को आसानी से नहीं स्वीकारा जाता. साथ ही कैथोलिक चर्च समलैंगिकता के भी विरुद्ध है और समलैंगिक विवाहों को नहीं स्वीकारता. इन्हीं दो बातों से अलेस्साँद्रा का धर्मसंकट का प्रश्न उठा, क्योंकि उन्होंने बैंकाक जा कर पुरुष से नारी बनने की शल्यक्रिया करवाने के बाद, इतालवी कानून के हिसाब से कोर्ट में अर्ज़ी दी कि उन्हें लिंग बदलने की अनुमति दी जाये. कोर्ट ने उनकी यह बात स्वीकार की और इस तरह अलेस्साँद्रो कानूनी तौर से भी, अलेस्साँद्रा बन गये. लेकिन अलेस्साँद्रा के बारे में चर्च के लोगों ने नगरपालिका द्वारा उनके तलाक की जबरदस्ती करने का विरोध किया है, वह कहते हैं कि पुरुष रूप में अलेस्साँद्रो ने अपनी पत्नी से विधिवत विवाह किया था, हमारी नज़र में कुछ नहीं बदला है, यह दोनो पति पत्नि हैं.

इतालवी कानून जहाँ एक और समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देता, दूसरी और ट्राँसजेंडर विषय में प्रगतिशील है, इसे एक बीमारी की तरह देखता है, उनके इलाज की सुविधा और लोगों को कानूनी लिंग बदलने की अनुमति देता है. अलेस्साँद्रा को क्या सलाह दी जाये, इस पर पुराने विचारों वाले लोग भी कुछ परेशान हैं, उन्हें भी कुछ समझ नहीं आता. अगर कहें कि उनका विवाह नहीं माना जा सकता क्योंकि वह दो औरतों का विवाह है, तो इसका यह अर्थ हुआ कि पति या पत्नी की बीमारी के नाम पर तलाक को स्वीकृति दी जा रही है. और अगर उन्हें तलाक के लिए मजबूर न करें तो समलैंगिक विवाह को स्वीकृति मिलती है.

अलेसान्द्रा ने मुझसे भारत में रहने वाले हिँजड़ों की स्थिति के बारे में पूछा. मुझे इस विषय में विषेश जानकारी नहीं थी, लेकिन मैंने उसे बताया कि इस वर्ष जनगणना में पहली बार भारत में ट्राँसजेन्डर लोगों को गिना जा रहा है, और उनके लिए पुरुष, स्त्री से अलग श्रेणी बनायी गयी है. अलेसान्द्रा बोली, "मुझे भारत के ट्राँसजेन्डर लोगों के बारे में मालूम नहीं इस लिए नहीं कह सकती कि यह सही है या गलत, लेकिन मैं नहीं मानती कि हमारे लिए एक अलग श्रेणी बनायी जाये. मैं अपने आप को पूर्ण रूप से स्त्री मानती हूँ और चाहती हूँ कि कानून मुझे नारी माने."

अलेस्साँद्रा कहती है, "हमारा समाज भिन्नता से डरता है, उसे स्वीकार नहीं करता. लेकिन मैं तलाक नहीं लूँगी. जब हम दोनो साथ खुश हैं तो हमें क्यों अलग किया जा रहा है? बात केवल आई कार्ड की नहीं, टेक्स, प्रापर्टी, सब की बी है, अगर नगरपालिका हमें पति पत्नी नहीं मानेगी तो वह सब झँझट खड़े हो जायेंगे. यह मेरे मानव अधिकारों की बात है, मैं लड़ूँगी."

आप का क्या विचार है, अलेसान्द्रा के प्रश्न के बारे में?

***
अलेसान्द्रा अलेसान्द्रा इटली के बड़े बैंक में कामगार यूनियन के लिए काम कार्यरत हैं और उनके काम का एक ध्येय यह भी है कि बैंक में काम करने वालों की भिन्नता को सम्पदा के रूप में देखा जाये न कि परेशानी के रूप में. इस विषय पर उन्होंने अन्य मित्रों के साथ मिल कर एक कम्पनी भी बनायी है जिसमें मानव भिन्नता से जुड़े विषयों का ध्यान और मान रख कर किस तरह बिज़नस किया जाये विषय पर सिखाया जाता है. उनकी तस्वीरें फेदेरीको बोरैला की हैं.

(Images of Alessandra Bernaroli are by Federico Borella)


8 टिप्‍पणियां:

  1. @हिंदी ब्लोगजगत,बहुत धन्यवाद

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  2. प्रसन्न रहना सीखना है, कैसे भी सीखा जाये।

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  3. दीपक भाई!
    इटली का कानून यदि समलैंगिक कानून को मान्यता नहीं देता तो उस में बुराई क्या है। वस्तुतः विवाह की जो परंपरागत अवधारणा है वह तो स्त्री-पुरुष के मध्य ही हो सकता है। अलेक्सांद्रो और उस की पत्नी के बीच हुआ विवाह तो वैध ही था और है। यदि अलेक्सांद्रो का लिंग परिवर्तन हो गया है और वह भी स्त्री हो कर अलेक्सांद्रा हो गया है तो उस से उन का विवाह अवैध नहीं हो सकता। हाँ, यदि इटली के कानून में प्रावधान हो तो वह उस दिन से शून्य माना जा सकता है जिस दिन से लिंग परिवर्तन हुआ है। मेरा मानना है कि समलैंगिक लोगों का साथ पति-पत्नी जैसा कभी नहीं हो सकता क्यों कि वे संतान उत्पन्न नहीं कर सकते, इस कारण इस सम्बन्ध को विवाह नहीं कहा जा सकता। यह एक साझीदार जैसी स्थिति है। दो समलैंगिक एक साथ रहने का समझौता कॉन्ट्रेक्ट कर सकते हैं और साथ रह सकते हैं। उन के सम्बंध में विवाह का कानून लागू नहीं हो सकता। उन के संबंध उन के बीच हुई संविदा से ही निर्धारित होंगे। इस कारण इस तरह के संबंधों को विवाह कहना या विवाह की संज्ञा देना वहाँ भी उचित नहीं है, जहाँ इस संबंध को कानून ने मान्यता दे दी है। हाँ इन संबंधों को कॉन्ट्रेक्ट से शासित होने के साथ कुछ देशों में कानून बना कर उन से भी शासित किया जा सकता है। फिर भी वह विवाह नहीं होगा। उस में साझीदारों के दायित्व और अधिकार विवाह के पक्षकारों के दायित्वों और अधिकारों से भिन्न होंगे।
    मेरा मानना है कि अलेक्सान्द्रा और उन की पत्नी अच्छे साझीदारों के रूप में साथ रह सकते हैं। यदि इटली का कानून उन का साथ नहीं देता है वे निश्चित रूप से मानवाधिकार वाली लड़ाई लड़ सकते हैं। लेकिन वे यदि यह दावा करें कि कानून उन्हें विवाह के पति-पत्नी जैसे अधिकार और दायित्व प्रदान करे, तो उन की यह जिद सही नहीं है।

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  4. बहुत अच्छी तरह आपने अलेसान्द्रा की समस्या लिखी। उसको शुभकामनायें। :)

    http://chitthacharcha.co.in/?p=1358

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  5. अनूप, चिट्ठाचर्चा में अलेसाँद्रा की कहानी को जगह देने के लिए धन्यवाद.

    दिनेश जी, आप की बात तर्क की दृष्टि से सही है और मेरे विचार में अधिकतर लोग यही सोचते हैं. लेकिन मेरे विचार में अगर विवाह को दो लोगों के साथ रह कर परिवार बनाने की दृष्टि से देखूँ तो आज के बदलते वातावरण में वह नये परिवार भी दिखते हैं जिनमें पति पत्नि दोनो पुरुष हैं या नारियाँ हैं, वह किसी मित्र की सहायता से बच्चे भी पैदा करते हैं, मिल कर एक दूसरे का साथ निभाते हैं. तो मुझे लगता है कि उन्हें "परिवार" की मान्यता दे कर हम नर नारी के बने परिवार के किसी अधिकार को कम नहीं करते, बल्कि इन नये परिवारों को मान देते हैं.

    आज कल कितने ही विवाह टूटते हैं, पर इससे कोई यह तो नहीं कह सकता कि विवाह को समाप्त कर देना चाहिये. पर इस डर से कि समलैगिंग जोड़ा साथ छोड़ देगा, उनका विवाह न होने देना, इसमें किसका फायदा है? एक समलैंगिक जोड़े को कई सालों से जानता था, वह लोग तीस साल के करीब साथ रहे जब उनमें से एक की मृत्यु हुई. इतने साल साथ रह कर भी, साथ में सुख दुख निभा कर भी, उनके एँक दूसरे की चीज़ो पर कोई अधिकार नहीं था जो कि पति या पत्नि का होना चाहिये था. उसका भाई, जो जीते जी बात तक नहीं करते थे, उसके मरने के बाद, उस के फ्लेट पर कब्ज़ा लेने पहुँच गये और कानून ने उन्हें ही उस सम्पत्ति का हकदार माना.

    अलेसाँद्रा ने अपनी पत्नि के साथ बच्चा नहीं चाहा, लेकिन उस परिवार में उनके साथ बच्चा भी हो सकता था, तो भी क्या उसके माता पिता को तलाक लेना पड़ता? विज्ञान और तकनीकी प्रगति एक तरफ़, और दूसरी ओर हमारे समाज के बदलते माप दंड जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अहम स्थान है, भविष्य में ऐसे प्रश्न अवश्य बढ़ायेगी. उनके उत्तर सोचने के लिए परिवार की परिभाषा भी शायद बदलेगी.

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  6. बहुत कठिन स्थिति है.शायद नई स्थिति में रिश्तों को भी नए नाम देने होंगे. नए रिश्तों को पुराने नाम ही क्यों दिए जाएँ या उनके लिए ही जिद की जाए.क्यों न केवल साथी ही कहा जाए? नए रिश्तों के लिए कानून भी नए बनाए जाएँ.
    घुघूती बासूती

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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